संज्ञा की परिभाषा और संज्ञा के प्रकार
संज्ञा की परिभाषा ( sangya ki paribhasha ) :– किसी वस्तु,स्थान,भाव और प्राणी को जिस नाम से पुकारते है उसका नाम ही उसकी संज्ञा है। जैसे- राम,सीता,कानपुर,गंगा,मिठास,कर्मचारी,पानी,नदी,पर्वत आदि
संज्ञा के प्रकार ( sangya ke prakar ) –
अर्थ के आधार पर संज्ञा पाँच प्रकार की होती है।
व्यक्तिवाचक संज्ञा ( vyakti vachak sangya ) – व्यक्तिवाचक संज्ञा वह होती है। जो हमें किसी स्थान और व्यक्ति और वस्तु का ज्ञात कराती है। जैसेः- लखनऊ,लब,कुश,मेज,गंगा आदि
जातिवाचक संज्ञा ( jati vachak sangya )– जातिवाचक संज्ञा वह होती है। जो हमें किसी जाति की जानकारी कराती है। जैसे- लड़का,लड़की,पहाड़ आदि
द्रव्यवाचक संज्ञा ( dravya vachak sangya )– द्रव्यवाचक संज्ञा वह होती है जिससे हमें उस द्रव्य और पदार्थ का बोध होता है। जिसकों हम माप और तौल सकते है। लेकिन उसकी संख्या में गिनती नहीं की जा सकती है। जैसेः- दूध,तेल,सोना,चाँदी आदि
समूहवाचक संज्ञा ( samuh vachak sangya )– वह संज्ञा जिसके कारण हम यह जान पाते है। अनेक वस्तुओं अनेक प्राणीयों के समूह के बिषय ज्ञात होता हो समूहवाचक संज्ञा होती हैं। जैसेः- ढेर किसी वस्तुओं और समूह,टीम,वर्ग,परिवार,सेना,झुण्ड आदि।
भाववाचक संज्ञा ( bhav vachak sangya )– भाववाचक संज्ञा इस नाम को कहते है। जब प्राणी को मोह,क्रोध,आनंद,वीरता जैसी अवस्था में अनेकों भाव या दशा,गुण,धर्म आदि का ज्ञान होता है तब भाववाचक संज्ञा होती है। जैसे- दूरी,भोलापन,ममत्व,सुन्दरता,वीरता,थकान,धबराहत आदि
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